Niryat Protsahan Punjigat Saman Yojana: निर्यात प्रोत्साहन पूंजीगत समान योजना के तहत व्यापारियों को मदद। जानें योजना के लाभ और आवेदन प्रक्रिया की पूरी जानकारी।
केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने एक बड़ी योजना शुरू की है। यह योजना चिकित्सा उपकरण उद्योग को मजबूत बनाने के लिए है।
इस योजना के लिए 2024-25 से 2026-27 तक 500 करोड़ रुपये का बजट है। इसमें विभिन्न क्षेत्रों को शामिल किया गया है।
यह योजना विनिर्माण, कौशल विकास, और नैदानिक अध्ययनों को बढ़ावा देती है। साथ ही, साझा अवसंरचना विकास और उद्योग को सुधारने पर भी ध्यान दिया जाएगा।
Niryat Protsahan Punjigat Saman Yojana का परिचय और महत्व
निर्यात प्रोत्साहन पूंजीगत सामान योजना भारतीय चिकित्सा उपकरण उद्योग को मजबूत करने के लिए एक महत्वपूर्ण पहल है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य है कि चिकित्सा उपकरण निर्माताओं, स्टार्ट-अप्स और शोध संस्थानों को वित्तीय सहायता दें।
यह योजना आयात निर्भरता को कम करने, स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देने और कौशल विकास पर केंद्रित है।
लाभार्थियों की श्रेणियां
इस योजना के लाभार्थियों में चिकित्सा उपकरण निर्माता, स्टार्ट-अप और शोध संस्थान शामिल हैं। ये संगठन चिकित्सा उपकरण क्षेत्र में नवाचार और उत्पादन क्षमता को बढ़ावा देते हैं।
वित्तीय वर्ष 2024-25 का बजट आवंटन
वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए इस योजना के लिए 500 करोड़ रुपये का बजट आवंटन किया गया है। यह राशि चिकित्सा उपकरण क्षेत्र के विकास और प्रगति में मदद करेगी।
“इस योजना का मूल उद्देश्य चिकित्सा उपकरण उद्योग को मजबूत करना है।”
निर्यात प्रोत्साहन पूंजीगत सामान योजना की मुख्य विशेषताएं
भारत में चिकित्सा उपकरणों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने एक योजना शुरू की है। इस योजना के कई महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं। ये विशेषताएं चिकित्सा उपकरण उद्योग को मजबूत बनाएंगी।
सामान्य सुविधाएँ: योजना के तहत, चिकित्सा उपकरण क्लस्टरों में सामान्य सुविधाओं का विकास किया जाएगा। इससे उत्पादक कंपनियों को लागत में कमी और उत्पादकता में वृद्धि होगी।
आर एंड डी प्रयोगशालाएँ: योजना के अंतर्गत आर एंड डी प्रयोगशालाओं की स्थापना की जाएगी। ये प्रयोगशालाएं नए चिकित्सा उपकरणों के अनुसंधान और विकास में मददगार होंगी।
परीक्षण केंद्र: योजना में परीक्षण केंद्रों की स्थापना का भी प्रावधान है। ये केंद्र चिकित्सा उपकरणों के गुणवत्ता मानकों को पूरा करने में मदद करेंगे।
आयात निर्भरता कम करने की दिशा: योजना में सीमांत निवेश योजना के माध्यम से आयात निर्भरता को कम करने का प्रावधान है। इससे स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा।
कौशल विकास: योजना के तहत कौशल विकास कार्यक्रम भी शुरू किये जाएंगे। ये कार्यक्रम चिकित्सा उपकरण निर्माण के लिए आवश्यक कौशल विकास में मदद करेंगे।
नैदानिक अध्ययन: योजना में नैदानिक अध्ययनों के लिए वित्तीय सहायता का भी प्रावधान है। ये अध्ययन चिकित्सा उपकरणों की गुणवत्ता और सुरक्षा को बेहतर बनाने में मदद करेंगे।
इन सभी विशेषताओं के साथ यह योजना भारतीय चिकित्सा उपकरण क्षेत्र की प्रतिस्पर्धात्मकता और निर्यात क्षमता को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
कंपनी का नाम | बाजार पूंजीकरण | 1 वर्ष का रिटर्न |
---|---|---|
टाइटन कंपनी लिमिटेड | ₹335,529.89 Cr | 14.98% |
हवेल्स इंडिया लिमिटेड | ₹125,588.32 Cr | 42.17% |
डिक्सन टेक्नोलॉजीज (इंडिया) लिमिटेड | ₹85,089.89 Cr | 157.10% |
कल्याण जूेलर्स इंडिया लिमिटेड | ₹77,357.89 Cr | 218.11% |
वोल्टास लिमिटेड | ₹61,364.23 Cr | 111.16% |
ब्लू स्टार लिमिटेड | ₹43,093.78 Cr | 142.51% |
व्हीरपूल ऑफ इंडिया लिमिटेड | ₹28,981.97 Cr | 41.02% |
क्रोम्पटन ग्रीव्स कंज्यूमर इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड | ₹27,857.03 Cr | 41.89% |
योजना के अंतर्गत वित्तीय सहायता का प्रावधान
निर्यात प्रोत्साहन पूंजीगत सामान योजना के तहत, विभिन्न प्रकार की वित्तीय सहायता दी जाती है। इसमें सामान्य सुविधाओं के लिए 20 करोड़ रुपये तक और परीक्षण सुविधाओं के लिए 5 करोड़ रुपये तक का अनुदान शामिल है।
अनुदान की सीमा
- सामान्य सुविधाओं के लिए अधिकतम 20 करोड़ रुपये तक का अनुदान।
- परीक्षण सुविधाओं के लिए अधिकतम 5 करोड़ रुपये तक का अनुदान।
वित्तीय सहायता के प्रकार
इस योजना के तहत, पूंजी सहायिकी भी दी जाती है। सीमांत निवेश योजना के तहत, 10-20% की एकमुश्त पूंजी सहायिकी दी जाती है। इसकी अधिकतम सीमा प्रति परियोजना 10 करोड़ रुपये है।
इसके अलावा, नैदानिक अध्ययनों के लिए 5 करोड़ रुपये तक की सहायता भी उपलब्ध है।
भुगतान की प्रक्रिया
- पात्र लाभार्थियों को वित्तीय सहायता का भुगतान मंजूरी के बाद किया जाता है।
- इस सहायता का उपयोग पात्र गतिविधियों के लिए किया जा सकता है।
- कौशल विकास अनुदान भी इस योजना के तहत दिया जाता है। यह लाभार्थियों को तकनीकी और व्यावसायिक कौशल प्राप्त करने में मदद करता है।
इस प्रकार, निर्यात प्रोत्साहन पूंजीगत सामान योजना लाभार्थियों को व्यापक वित्तीय सहायता प्रदान करती है। यह उनकी क्षमता को बढ़ावा देती है।
क्लस्टर विकास कार्यक्रम
निर्यात प्रोत्साहन पूंजीगत सामान योजना के अंतर्गत, चिकित्सा उपकरण क्लस्टरों को प्राथमिकता दी जाती है। इन क्लस्टरों में निर्माताओं के लिए अनुसंधान प्रयोगशालाएँ और डिजाइन केंद्र बनाए जाते हैं।
केंद्र सरकार क्लस्टरों को मजबूत बनाने के लिए वित्तीय सहायता देती है। यह साझा अवसंरचना का निर्माण संभव बनाता है। इससे निर्माताओं को लागत में कमी और अनुसंधान सुविधाएँ मिलती हैं।
चिकित्सा उपकरण क्लस्टरों का विकास देश में चिकित्सा उपकरण क्षेत्र की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
विषय | विवरण |
---|---|
चिकित्सा उपकरण क्लस्टर | चिकित्सा उपकरण निर्माताओं का एक सामूहिक केंद्र, जहां साझा अवसंरचना और सुविधाएं उपलब्ध होती हैं |
साझा अवसंरचना | क्लस्टर में स्थित सभी निर्माताओं के लिए उपलब्ध अनुसंधान प्रयोगशालाएं, परीक्षण केंद्र और अन्य बुनियादी सुविधाएं |
अनुसंधान सुविधाएँ | क्लस्टर में स्थित निर्माताओं को उनके उत्पादों के अनुसंधान और विकास में सहायता प्रदान करने वाली सुविधाएं |
“चिकित्सा उपकरण क्लस्टरों का विकास देश में चिकित्सा उपकरण क्षेत्र की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।”
कौशल विकास और क्षमता निर्माण
निर्यात प्रोत्साहन पूंजीगत सामान योजना में मेडटेक कौशल विकास और तकनीकी कार्यबल का निर्माण बहुत महत्वपूर्ण है। योजना में कई प्रशिक्षण कार्यक्रम और तकनीकी सहायता शामिल हैं।
प्रशिक्षण कार्यक्रम
योजना के तहत, स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के लिए 21 करोड़ रुपये तक की वित्तीय सहायता दी जाती है। अल्पकालिक पाठ्यक्रमों और डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के लिए, प्रति अभ्यर्थी 10,000 रुपये और 25,000 रुपये तक की सहायता दी जाती है।
तकनीकी सहायता
योजना के तहत, उद्योग को तकनीकी सहायता मिलती है। यह मेडटेक उत्पादों को डिजाइन और विकसित करने में मदद करता है। इससे भारतीय चिकित्सा उपकरण बाजार में भारत की प्रतिस्पर्धा बढ़ती है।
कार्यक्रम | वित्तीय सहायता |
---|---|
स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम | 21 करोड़ रुपये तक |
अल्पकालिक पाठ्यक्रम | 10,000 रुपये प्रति अभ्यर्थी |
डिप्लोमा पाठ्यक्रम | 25,000 रुपये प्रति अभ्यर्थी |
इस तरह, कौशल विकास और क्षमता निर्माण के माध्यम से, योजना मेडटेक उद्योग में भारत की प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए काम कर रही है।
नैदानिक अध्ययन सहायता प्रावधान
भारतीय चिकित्सा उपकरण उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने एक योजना शुरू की है। इस योजना के तहत, कंपनियों और स्टार्ट-अप्स को वित्तीय सहायता मिलती है। यह सहायता पशु अध्ययन, क्लिनिकल ट्रायल, और इन-विट्रो डायग्नोस्टिक्स में दी जाती है।
पशु अध्ययन के लिए 2.5 करोड़ रुपये तक की सहायता मिलती है। यह सहायता नए चिकित्सा उपकरणों के विकास में मदद करती है। इसके अलावा, 5 करोड़ रुपये तक की सहायता जांच उपकरणों की नैदानिक जांच के लिए उपलब्ध है।
नए इन-विट्रो डायग्नोस्टिक उत्पादों के लिए 1 करोड़ रुपये तक की सहायता दी जाती है। यह भारत को आत्मनिर्भर बनाने में मदद करेगा। आयात पर निर्भरता कम होगी।
प्रकार | वित्तीय सहायता |
---|---|
पशु अध्ययन | 2.5 करोड़ रुपये तक |
जांच उपकरणों की नैदानिक जांच | 5 करोड़ रुपये तक |
इन-विट्रो डायग्नोस्टिक उत्पादों का नैदानिक प्रदर्शन मूल्यांकन | 1 करोड़ रुपये तक |
यह योजना भारतीय चिकित्सा उपकरण उद्योग को बढ़ावा देगी। पशु अध्ययन, क्लिनिकल ट्रायल, और इन-विट्रो डायग्नोस्टिक्स क्षेत्र में नवाचार को प्रोत्साहित करेगी।
आयात निर्भरता को कम करने की रणनीति
भारतीय मेडटेक उद्योग को आयात निर्भरता से मुक्त करने के लिए, निर्यात प्रोत्साहन पूंजीगत सामान योजना कुछ महत्वपूर्ण कदम उठा रही है। इसका मुख्य उद्देश्य स्वदेशी निर्माण को बढ़ावा देना और आयात प्रतिस्थापन को प्रोत्साहित करना है।
स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा
योजना के तहत, घरेलू चिकित्सा उपकरण निर्माताओं को वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है। इससे मेडटेक आपूर्ति श्रृंखला मजबूत होगी और देश में मूल्य संवर्धन होगा। आयातित घटकों पर निर्भरता कम होगी, जो वर्तमान में अधिक है।
आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम
- योजना में कच्चे माल और प्रौद्योगिकी के स्वदेशीकरण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
- चिकित्सा उपकरणों के लिए घरेलू क्षमताओं का विकास किया जा रहा है, जिससे आयात पर निर्भरता कम होगी।
- स्वदेशी निर्माण और आयात प्रतिस्थापन पर जोर देकर, योजना देश में मेडटेक आत्मनिर्भरता हासिल करने की दिशा में कदम बढ़ा रही है।
“हमारा लक्ष्य चिकित्सा उपकरणों में आत्मनिर्भरता हासिल करना है। इस योजना के माध्यम से हम देश में मूल्य संवर्धन को बढ़ावा देंगे और आयातित घटकों पर निर्भरता को कम करेंगे।”
उद्योग संवर्धन गतिविधियां
भारतीय चिकित्सा उपकरण उद्योग को दुनिया भर में दिखाने के लिए, प्रदर्शनियाँ, व्यापार मेले और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के कार्यक्रमों पर काम किया जा रहा है।
इन गतिविधियों से निर्यात बढ़ता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय उत्पादों की पहुंच भी बढ़ती है। इससे भारतीय चिकित्सा उपकरण उद्योग वैश्विक स्तर पर मजबूत होता है।
- प्रमुख प्रदर्शनियाँ और व्यापार मेले जैसे MEDICAL FAIR INDIA, HEALTH TECH और ARAB HEALTH में भाग लेने से भारतीय कंपनियों को मौका मिलता है।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग कार्यक्रमों के माध्यम से, भारतीय कंपनियों को विदेशी निवेशकों और उपभोक्ताओं तक पहुंचने में मदद मिलती है।
इन गतिविधियों से भारतीय चिकित्सा उपकरण उद्योग को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने में मदद मिलती है। इसके निर्यात को भी बढ़ावा मिलता है।
“प्रदर्शनियों और व्यापार मेलों में भाग लेना हमारे उत्पादों को वैश्विक बाजार में पहचान दिलाने में मदद करता है।”
– एक चिकित्सा उपकरण निर्माता
योजना का क्रियान्वयन और निगरानी
निर्यात प्रोत्साहन पूंजीगत सामान योजना को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और विभाग लागू करते हैं। एक विशेष समिति इस योजना की प्रगति की निगरानी करती है। यह समिति नियमित रूप से रिपोर्ट तैयार करती है।
नीति आयोग भी योजना के प्रभाव का मूल्यांकन करता है। वे आवश्यक सुधारों की सिफारिश करते हैं।
कार्यान्वयन एजेंसियां
निर्यात प्रोत्साहन पूंजीगत सामान योजना को निम्नलिखित एजेंसियां लागू करती हैं:
- स्वास्थ्य मंत्रालय
- उद्योग संवर्धन विभाग
- नीति आयोग
- क्लस्टर विकास कार्यक्रम
- कौशल विकास और क्षमता निर्माण
प्रगति की निगरानी
एक विशेष समिति इस योजना की प्रगति की समीक्षा करती है। यह समिति नियमित रूप से रिपोर्ट तैयार करती है।
नीति आयोग भी इस योजना का मूल्यांकन करता है। वे आवश्यक प्रस्ताव सुझाते हैं।
“निर्यात प्रोत्साहन पूंजीगत सामान योजना का प्रभावी कार्यान्वयन और निगरानी भारतीय चिकित्सा उपकरण उद्योग को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।”
भारतीय चिकित्सा उपकरण बाजार का विश्लेषण
भारतीय चिकित्सा उपकरण बाजार तेजी से बढ़ रहा है। इसका बाजार आकार बढ़ रहा है। वृद्धि दर में भी बड़ा बदलाव आया है।
इस बाजार में बड़ी कंपनियां और भारतीय स्टार्ट-अप्स हैं।
आयातित उत्पादों पर निर्भरता पहले बहुत थी। लेकिन अब सरकार स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा दे रही है।
इससे आयात निर्भरता कम हो रही है। भारतीय कंपनियां अब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा कर सकती हैं।
“भारतीय चिकित्सा उपकरण बाजार में तेजी से बदलाव हो रहे हैं और स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा मिल रहा है।”
भारतीय चिकित्सा उपकरण बाजार की कुछ प्रमुख विशेषताएं हैं:
- रॉबोटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डिजिटल प्रौद्योगिकियों का बढ़ता उपयोग
- अस्पतालों और स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में निवेश में वृद्धि
- नए और नवीन चिकित्सा उपकरणों के लिए अनुभव और प्रयोग में वृद्धि
- कोविड-19 महामारी के बाद चिकित्सा उपकरण उद्योग में बढ़ती मांग
भारतीय चिकित्सा उपकरण बाजार में तेजी से बदलाव हो रहे हैं। सरकारी पहलों और निजी निवेश से स्वदेशी निर्माण बढ़ रहा है।
आयात निर्भरता कम होगी। भारतीय कंपनियां अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में प्रतिस्पर्धा कर सकेंगी।
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा और निर्यात संभावनाएं
भारतीय चिकित्सा उपकरण उद्योग के लिए वैश्विक बाजार बहुत संभावनाएं लेकर आता है। गुणवत्ता मानकों को बढ़ाकर और नए उत्पादों पर ध्यान देकर, भारतीय कंपनियां विश्वस्तरीय प्रतिस्पर्धा में खड़ी हो सकती हैं। उन्हें उभरते बाजारों पर विशेष ध्यान देना होगा और अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त करनी होगी।
अध्ययनों से पता चलता है कि कार्बन क्रेडिट व्यापार में अंतर्राष्ट्रीय मानकों का पालन करना बहुत जरूरी है। दुनिया भर में केवल 16% परियोजनाएं अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार हैं। नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं और वनरोपण कार्यक्रमों में कार्बन क्रेडिट सृजन की बहुत संभावनाएं हैं।
भारतीय कंपनियों को वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा करने के लिए गुणवत्ता और नवीनता पर ध्यान देना होगा। उन्हें उभरते बाजारों में और अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त करके अपनी निर्यात रणनीति को मजबूत करना होगा।
“कार्बन क्रेडिटिंग में किए गए अध्ययन ने प्रकट किया है कि अतिरिक्तता की आवश्यकता का आकलन करना महत्वपूर्ण है।”
निर्यात संभावनाएं
- वैश्विक बाजारों में चिकित्सा उपकरणों की बढ़ती मांग
- भारतीय कंपनियों की लागत प्रतिस्पर्धात्मकता
- उभरते बाजारों में विस्तार की गुंजाइश
- अंतर्राष्ट्रीय मानकों को पूरा करने की क्षमता
प्रमुख चुनौतियां
- गुणवत्ता मानकों को बढ़ाना
- नवीन प्रौद्योगिकी का अपनाना
- अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में प्रतिस्पर्धा करना
- विनियामक अनुपालन
भारतीय चिकित्सा उपकरण उद्योग के पास वैश्विक बाजार में प्रवेश करने का व्यापक अवसर है। गुणवत्ता मानकों को बढ़ावा देकर और नए उत्पाद विकसित करके, कंपनियां अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकती हैं। उन्हें उभरते बाजारों पर ध्यान देना और अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त करना होगा।
योजना की चुनौतियां और समाधान
निर्यात प्रोत्साहन पूंजीगत सामान योजना को लागू करने में कई चुनौतियां हैं। ये चुनौतियां नियामक मुद्दे, अनुसंधान और विकास, और कौशल अंतर हैं।
कार्यान्वयन की बाधाएं
योजना को लागू करने में नियामक प्रक्रिया की देरी एक बड़ी चुनौती है। उद्योग में अनुसंधान और विकास की कमी भी एक समस्या है।
कौशल अंतर भी एक बड़ा मुद्दा है। प्रशिक्षित श्रमिकों की कमी से योजना प्रभावित होती है।
प्रस्तावित समाधान
इन समस्याओं का समाधान नियामक प्रक्रिया को सुधारने से हो सकता है। उद्योग में अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देना भी जरूरी है।
कौशल विकास पर भी ध्यान देना आवश्यक है। इससे योजना का प्रभावी कार्यान्वयन होगा। उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मकता भी सुधरेगी।
FAQs
क्या यह योजना चिकित्सा उपकरण उद्योग को मजबूत करने में मदद करेगी?
हाँ, यह योजना उद्योग को मजबूत करने के लिए है। इसमें विनिर्माण और कौशल विकास शामिल है।
नैदानिक अध्ययनों के लिए भी सहायता दी जाती है। साझा अवसंरचना विकास और उद्योग संवर्धन भी इसमें शामिल हैं।
इस योजना के तहत किन प्रकार की वित्तीय सहायता दी जाती है?
विभिन्न प्रकार की वित्तीय सहायता दी जाती है। इसमें अनुदान और पूंजी सहायता शामिल है।
नैदानिक अध्ययनों के लिए भी वित्तीय सहायता दी जाती है।
कौशल विकास कार्यक्रम का क्या लक्ष्य है?
कौशल विकास कार्यक्रम का लक्ष्य कुशल कार्यबल तैयार करना है। इसमें स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों की वित्तीय सहायता दी जाती है।
अल्पकालिक पाठ्यक्रमों और डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के लिए भी सहायता मिलती है।
नैदानिक अध्ययन सहायता योजना के तहत क्या प्रावधान हैं?
इस योजना के तहत वित्तीय सहायता दी जाती है। इसमें पशु अध्ययन और उपकरणों की नैदानिक जांच शामिल है।
नए इन-विट्रो डायग्नोस्टिक उत्पादों के नैदानिक प्रदर्शन मूल्यांकन के लिए भी सहायता मिलती है।
योजना कैसे आयात निर्भरता को कम करने की दिशा में काम करती है?
योजना स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देती है। यह भारतीय मेडटेक आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करती है।
इससे देशी चिकित्सा उपकरण निर्माताओं की क्षमता में सुधार होगा।
योजना के क्रियान्वयन और प्रगति की निगरानी कैसे होती है?
योजना का क्रियान्वयन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा किया जाता है। एक समर्पित समिति प्रगति की निगरानी करती है।
नियमित रूप से प्रगति रिपोर्ट तैयार की जाती है। नीति आयोग भी योजना का मूल्यांकन करता है।
भारतीय चिकित्सा उपकरण बाजार में क्या संभावनाएं हैं?
भारतीय चिकित्सा उपकरण बाजार तेजी से बढ़ रहा है। अगले कुछ वर्षों में इसका विस्तार होगा।
गुणवत्ता मानकों को बढ़ाकर और नवीन उत्पादों पर ध्यान देकर, भारतीय कंपनियां वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकती हैं।
योजना के क्रियान्वयन में क्या प्रमुख चुनौतियाँ हैं?
योजना के क्रियान्वयन में नियामक मुद्दे एक बड़ी चुनौती हैं। अनुसंधान और विकास में कमी भी एक चुनौती है।
कौशल अंतर भी एक प्रमुख चुनौती है।